Wednesday, October 14, 2009

तीज और त्यौहार

घर में गेहूं हों जहाँ ,मनता है त्यौहार
भूंजी भांग न हो जहां ,कैसे हो व्यवहार
कैसे हो व्यवहार ,नचे कैसे खुशहाली
जगर मगर हों दींप ,मने कैसे दीवाली
अधरों pr हो हास ,उमंगें हों तन मन में
समता का हो राज़ बटे धन बल घर घर में
दीवाली के दियोंका ,रूप रंग आकार

देख देख मन मगन हो ,ज्यों साकार
प्रेम एकता त्याग ,सबकी है धुंधली धूप
चालाकी षड्यंत्र ,करते है खूब जुगाली
जगर मगर बाज़ार ,मने उनकी दीवाली

तीज और त्यौहार की ,मूल भावना भंग
वैश्वीकरण बाज़ार की ,सबने पी ली भंग
सबने पी ली भंग ,किसी को हिश नहीं है
संस्कृति धर्म उदास ,अरे अफ़सोस नहीं है
पुरखे यदि आ जायं जब गाँव शहर गलियार
भौचक्के रह जाय ,लख तीज और त्यौहार


Friday, July 3, 2009

दो कुण्डलियाँ : फटी कमीज़

फुर्सत सिलने की कहाँ,जिनकी फटी कमीज़
बंधुआं मजदूरी उन्हें ,सौपे रोज तमीज़
सौपे रोज़ तमीज़ ,नहीं कुछ उनकी हस्ती
बहता उनका खून,उडाते मालिक मस्ती
भोग सकें आनंद ,नहीं जुट पाती जुर्रत
मजदूरी जंजाल कहाँ मिल पाती फुर्सत

मजबूरी में फैलते, सचमुच दोनों हाथ
जब मजबूरी जकड़ ले,कोई ना दे साथ
कोई ना दे साथ ,सभी कर जायं किनारा
भाई बांधव पूत ,जलाएं चूल्हा न्यारा
तन की फटी कमीज़ ,बढ़ाती मन की दूरी
साथ ण दे आनंद ,झेलना दुःख मजबूरी
[भोपाल:०४.०७.०९]

Wednesday, May 6, 2009

गाली का गौरव :तीन

गाली अंतर्मन छिपा ,सबसे गूढ़ रहस्य
मदिरा पीता सेक्स की ,हर गाली का कथ्य
हर गाली का कथ्य ,चाहता बनना गालिब
गली में हर बात ,लगे ना सदा मुनासिब
पर गाली आनंद ,समझते हैं भोपाली
जबी भी करते बात,होठ पर पहले गाली
[भोपाल :०५ .०५ .० 9]

गाली का गौरव :दो

जहां कहीं भी गालियाँ ,नोंक झोंक में मस्त
गुत्थम गुत्था का मज़ा ,बहे हवा अलमस्त
बहे हवा अलमस्त ,उमड़े घुमड़े तब भीड़
पुलिस पुलिस का शोर ,भगदड़ में मिले न नीड़
गाली का इतिहास ,बता सका न कोई भी
गाली सदाबहार ,जगत में जहां कहीं भी
[भोपाल:०७.०५.०९]

गाली का गौरव:एक

हर भाषा हर देश में ,गाली का अस्तित्वसमय
समय समय की गालियाँ ,रखतीं बड़ा महत्त्व
रखतीं बडा महत्व ,भरें खुशियों से झोली
हो जब द्वाराचार,कि धूल धूसरित होली
कवि लेखक विद्वान् ,न दे पाये परिभाषा
शान कभी अपमान ,गालियों से है आशा

Sunday, May 3, 2009

गाली :कुछ कुंडलियाँ

हर भाषा हर देश में ,गाली का अस्तित्व
समय समय की गालियाँ ,रखतीं बड़ा महत्व
रखतीं बड़ा महत्व ,भरें खुशियों से झोली
हो जब द्वाराचार,कि धूल धूसरित होली
कवि लेखक विद्वान् ,न दे पाये परिभाषा
शान कभी अपमान ,गालियों से है आशा

जहां कहीं भी गालियाँ ,नोंक झोंक में मस्त
गुत्थम गुत्था का मजा ,बहे हवा अलमस्त
बहे हवा अलमस्त ,उमड़े दर्शकगन भीड़
पुलिस पुलिस का शोर ,भगदड़ में मिले न नीड़
गाली की औकात ,नप ना पाई कभी भी
गाली सदाबहार ,जगत में जहां कहीं भी

पाश्चाताप

मन मसोसकर रह गया ,पढ़कर असल किताब

उल्टा कैसे हो गया ,सीधा सरल हिसाब

सीधा सरल हिसाब ,गले की फांसबन गया

ताजमहल इतिहास ,अरे उपहास बनk uredगया

बिखरा ज्यों आनंद,पतझर में पत्ते -सुमन

टूटे उलझे तार , रहें कुरेद हैं तन मन

भोपाल:१९.०४.०९]

आनंद की कुंडलियाँ

पर्वत जैसी पीर में ,पापा आते याद
कही अनकही ध्यानसे ,सुनते हैं फरियाद
सुनते हैं फरियाद ,पैठते गहरे तल में
हल सबको स्वीकार ,खोज लाते हैं पल में
मन की मिटे खटास ,पिलाते मीठा शर्बत
घर भर दे आनंद ,पिघल संशय का पर्वत
[भोपल१८.०४.०९]

Saturday, January 31, 2009

राई से पर्वत : ओबामा

आर्थिक मंदी युद्ध में ,लहर सुनामी जोश
दुनिया को बतला दिया ,'ओबामा को होश
आतंकवाद जुवालामुखी ,हो जाए जब राख
'ओबामा' की विश्व में ,तभी जमेगी साख
नहीं किसी भी एक से ,बनता कोई देश
जन गन मन की एकता ,देती सुख संदेश
सारी दुनिया झेलती , घोर प्रदूषण मार
'ओबामा'तरकश कसा ,करना उस पर वार
'ओबामा'की राह की ,सच्ची मित्र ' मिशेल '
दो कलियों की गंध से ,सुरभित जीवन खेल
फूंक फूंक कर जो चले ,शूल भरी जब राह
सूरज -सी हंसने लगे ,भले असंभव चाह
राई से पर्वत बना ,पूत 'बाराक हुसैन '
बदले ना जब तक हवा ,उसे खान सुख चैन
सारी दुनिया की gadee ओबामा पर आँख
देखें कब तक दे सके ,विश्व शांत को paankh
[भोपाल:२१.०१.०९]

Sunday, January 11, 2009

समकालीन दोहे


जलाकर जलाकर बस्तियाँ ,खुश होते हैं लोग
वेशर्मी निर्लज्जता , घेरे उनको रोग
पंख लगाकर जब उडें ,मन में सुख के भाव
हुशियाँ फिर चूकें नहीं ,अपना अपना दाँव
ओंठ सिले चेहरा धंसा ,आँसू पीते गीत
hअन्सता भी रोने लागे ,धोखा दे जब मीत
बड़ी बड़ी बातें करें ,हो ओछी औकात
शूल फूल बन जाय तो ,बन जाए सौगात
ताल ताल तट पर जमें ,बगुलें पहरेदार
डर डर कर सब मछरियाँ,क्यों ना हों बीमार
आज़ादी जब से मिली ,घर -आँगन दीवार
राम रहीमा बीच में ,खड़ी रोज़ तकरार
बिषधर वीन बजा रहे ,रहे सपेरे नाच
भूल गए सब चौकड़ी,तन मन रही न आंच
शैल शिखर की भव्यता ,तन मन हुआ विभोर
नीरवता शासन करे ,जिसका ओर न छोर
भावुक मन रोके नहीं ,रुदन क्षोभ उल्लास
जन मन की अंतर्कथा ,आँसू को अहसास
इधर उधर सब ओर ही ,फैला भष्टाचार
समझाऊँ कैसे किसे ,क्या है शिष्टाचार
दुनिया में कुछ फितरती ,कभी न मानें भूल
तिनके जैसी बात को,देते रहते तूल
सच बोलें तो हारते ,हरिश्चन्द्र से मीत
झूठ बोलकर दूसरे ,बाजी लेते जीत
महगीं रोटी हो गयी ,सस्ते हैं अब यान
नर नारी रोबोट से ,कलियुग की पहिचान
समय नहीं अब रह गया ,खाओ मिलजुल खीर
इधर उधर फ़ैली हुई ,पर्वत जैसी पीर


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