Sunday, May 3, 2009

आनंद की कुंडलियाँ

पर्वत जैसी पीर में ,पापा आते याद
कही अनकही ध्यानसे ,सुनते हैं फरियाद
सुनते हैं फरियाद ,पैठते गहरे तल में
हल सबको स्वीकार ,खोज लाते हैं पल में
मन की मिटे खटास ,पिलाते मीठा शर्बत
घर भर दे आनंद ,पिघल संशय का पर्वत
[भोपल१८.०४.०९]

No comments: