Friday, July 3, 2009

दो कुण्डलियाँ : फटी कमीज़

फुर्सत सिलने की कहाँ,जिनकी फटी कमीज़
बंधुआं मजदूरी उन्हें ,सौपे रोज तमीज़
सौपे रोज़ तमीज़ ,नहीं कुछ उनकी हस्ती
बहता उनका खून,उडाते मालिक मस्ती
भोग सकें आनंद ,नहीं जुट पाती जुर्रत
मजदूरी जंजाल कहाँ मिल पाती फुर्सत

मजबूरी में फैलते, सचमुच दोनों हाथ
जब मजबूरी जकड़ ले,कोई ना दे साथ
कोई ना दे साथ ,सभी कर जायं किनारा
भाई बांधव पूत ,जलाएं चूल्हा न्यारा
तन की फटी कमीज़ ,बढ़ाती मन की दूरी
साथ ण दे आनंद ,झेलना दुःख मजबूरी
[भोपाल:०४.०७.०९]

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