आंखमिचौनी भूलकर ,घन बरसे जब खूब
सौंधी सौंधी गंध से ,महकी धरती दूब
महकी धरती दूब ,ताप को लगा पलीता
पारें का मन शांत ,हाथ में थामे फीता
ताप हुआ बेज़ार ,शकल सब औनी पौनी
भूल गए घनराज ,खान की आँख मिचौनी
[भरूच:०७.०६.२०१०]
Wednesday, June 9, 2010
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