सच कहता हूँ
सच सच सुनकर
लग जातीं हैं सबको मिर्चीं
सरे आम इज्ज़त लुटती हैं
चना मटर जैसी भुनती है
जन्मदायिनी जग की जननी
बिना मौत धनिया मरती है
जब जब मांगे
राहत होरी
बस्तों में बंध जाती अर्जी
वैश्वीकरण बजार उग रहा
दिन्दीन भ्रष्टाचार बढ़ रहा
जर ज़मीन के झंझट सारे
नहीं किसी को न्याय मिल रहा
राम न जाने
कब क्या होगा
सत्य धर्म की चले न मर्जी
कांक्रीट के जंगल उगते
वन उपवन घर आँगन जलते
घोर प्रदूषण पनप रहा है
बाढ़ प्रलय तूफ़ान मचलते
शेष रहेगा
पानी पानी
सकल विकास लगेगा फर्जी
भोपाल:१०.०४.२०१०]
सच सच सुनकर
लग जातीं हैं सबको मिर्चीं
सरे आम इज्ज़त लुटती हैं
चना मटर जैसी भुनती है
जन्मदायिनी जग की जननी
बिना मौत धनिया मरती है
जब जब मांगे
राहत होरी
बस्तों में बंध जाती अर्जी
वैश्वीकरण बजार उग रहा
दिन्दीन भ्रष्टाचार बढ़ रहा
जर ज़मीन के झंझट सारे
नहीं किसी को न्याय मिल रहा
राम न जाने
कब क्या होगा
सत्य धर्म की चले न मर्जी
कांक्रीट के जंगल उगते
वन उपवन घर आँगन जलते
घोर प्रदूषण पनप रहा है
बाढ़ प्रलय तूफ़ान मचलते
शेष रहेगा
पानी पानी
सकल विकास लगेगा फर्जी
भोपाल:१०.०४.२०१०]
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