कौन सुनेगा
किसे सुनाऊं
इस कलियुग की रामकहानी
नर - नारी मशीन की छाँव
धरा -धाम पर धरें ना पाँव
चाँद सितारों तक जा पहुँचे
जपते जपते नीर का नाँव
कल के अचरज
सभी गिनाऊँ
रखना मुश्किल याद जबानी
अम्मा के हाथों की रोटी
सालन चटनी लगती खोटी
बाज़ारों की सड़ी गली भी
जितनी महगी उतनी मीठी
रेशम -रिश्ते
हुए उबाऊ
अपनेपन की लटी निशानी
चलता है अब सिक्का खोटा
शुद्ध हवा पानी का टोटा
वैश्वीकरण बाजारबाद नित
इधर उधर भाँजें सोंटा
किसको कैसे
गीत सिखाऊँ
अधर अधर पर खर -स्वर -पानी
[भोपाल:२६.०४.२०१०]
Monday, April 26, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment