Thursday, April 15, 2010

आतंक का साया

चील गिद्ध कौवे मंडराते
लिए कफ़न के बस्ते
टिड्डी दल बन फसल चाटते
आतंकबादिए दस्ते
पलक झपकते ही बिछ जाती
लाशों पर जब लाशें
शकसंदेहों के घेरों से
निकल न पातीं फांसें
छाई रहती है दहशतगर्दी
सुबह शाम दोपहरी
आतंकबाद के सौदागर
बुनते चादर धुन्धरी
तंत्र मन्त्र हैरान
भय का तना वितान
नींद नहीं जब आए
कैसे मन मुस्काए?

कांक्रीट के जंगल बुनते
वनंउपवन की ठठरी
पञ्च तत्व हो गए विषैले
चिंतित दुनिया सबरी
तापमान की उछलकूद से
काँप उठा भूमंडल
प्रक्रतिनटी के तेवर तीखे
लिए विनाश कमंडल
वादों के दलदल में दुनिया
भटक गई है रस्ता
वैश्वीकरण बाजारबाद से
हुई उधारी खस्ता
बर्बादी आभूषण
भ्रष्टाचार-प्रदूषण
आतंकवाद बन छाए
कैसे मन मुस्काए ?



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