Saturday, January 31, 2009

राई से पर्वत : ओबामा

आर्थिक मंदी युद्ध में ,लहर सुनामी जोश
दुनिया को बतला दिया ,'ओबामा को होश
आतंकवाद जुवालामुखी ,हो जाए जब राख
'ओबामा' की विश्व में ,तभी जमेगी साख
नहीं किसी भी एक से ,बनता कोई देश
जन गन मन की एकता ,देती सुख संदेश
सारी दुनिया झेलती , घोर प्रदूषण मार
'ओबामा'तरकश कसा ,करना उस पर वार
'ओबामा'की राह की ,सच्ची मित्र ' मिशेल '
दो कलियों की गंध से ,सुरभित जीवन खेल
फूंक फूंक कर जो चले ,शूल भरी जब राह
सूरज -सी हंसने लगे ,भले असंभव चाह
राई से पर्वत बना ,पूत 'बाराक हुसैन '
बदले ना जब तक हवा ,उसे खान सुख चैन
सारी दुनिया की gadee ओबामा पर आँख
देखें कब तक दे सके ,विश्व शांत को paankh
[भोपाल:२१.०१.०९]

Sunday, January 11, 2009

समकालीन दोहे


जलाकर जलाकर बस्तियाँ ,खुश होते हैं लोग
वेशर्मी निर्लज्जता , घेरे उनको रोग
पंख लगाकर जब उडें ,मन में सुख के भाव
हुशियाँ फिर चूकें नहीं ,अपना अपना दाँव
ओंठ सिले चेहरा धंसा ,आँसू पीते गीत
hअन्सता भी रोने लागे ,धोखा दे जब मीत
बड़ी बड़ी बातें करें ,हो ओछी औकात
शूल फूल बन जाय तो ,बन जाए सौगात
ताल ताल तट पर जमें ,बगुलें पहरेदार
डर डर कर सब मछरियाँ,क्यों ना हों बीमार
आज़ादी जब से मिली ,घर -आँगन दीवार
राम रहीमा बीच में ,खड़ी रोज़ तकरार
बिषधर वीन बजा रहे ,रहे सपेरे नाच
भूल गए सब चौकड़ी,तन मन रही न आंच
शैल शिखर की भव्यता ,तन मन हुआ विभोर
नीरवता शासन करे ,जिसका ओर न छोर
भावुक मन रोके नहीं ,रुदन क्षोभ उल्लास
जन मन की अंतर्कथा ,आँसू को अहसास
इधर उधर सब ओर ही ,फैला भष्टाचार
समझाऊँ कैसे किसे ,क्या है शिष्टाचार
दुनिया में कुछ फितरती ,कभी न मानें भूल
तिनके जैसी बात को,देते रहते तूल
सच बोलें तो हारते ,हरिश्चन्द्र से मीत
झूठ बोलकर दूसरे ,बाजी लेते जीत
महगीं रोटी हो गयी ,सस्ते हैं अब यान
नर नारी रोबोट से ,कलियुग की पहिचान
समय नहीं अब रह गया ,खाओ मिलजुल खीर
इधर उधर फ़ैली हुई ,पर्वत जैसी पीर


करेंbadii baaten karen