जितना उसका हक अपना ,अब तुमसे माग रही
सिंहासन खाली कर दो ,अब जनता जाग पडी
बधुआ मजदूरी में तुमने
उसको स्वर्ग दिखाया
पूरी हलुवा तुमने चाटा
जूठन उसे खिलाया
आजादी का पाठ पढा , टू सीना तान खडी
कलम किताबो पर कब्जा कर
उलटा पाठ पदाया
जादू टोना भूल भुलैयोँ
मेउसको भरमाया
भाषा समझी सही सही ,तबसे भौहें अकड़ी
महलों मे कैद रोशनी की
कुटियोँ को तम बाटा
मीन मे मेक निकाली जिसने
पडा गाल पर चाटा
पीड़ा कसक रही मन में ,बदले के लिए अड़ी
[भोपाल: 10.1.०८]
Monday, March 17, 2008
Thursday, March 13, 2008
अम्मा
सच कहता हूँ मेरी अम्मा
मर-मर-कर भी,
मरी नहीं ।
घर-ऑंगन-चौपाल-खेत के
सारे फर्ज निभाए
देवरानी ननदों ने टोंका
ऑंधी तूफानों ने रोका
थक-थक कर भी, थकी नहीं
मेरी अम्मा
घर बाहर या आन गाँव का
द्वारे पथिक ठिठक जाए
बात-बात में अम्मा आए
आवभगत नयनों में छाए
खारा निर्झर झर-झर जाए,
झर-झर कर भी,
झरी नहीं
मेरी अम्मा
जब-जब खर्च खड़े मुँह बाए
खर्चा-पानी जुटा न पाए
यादों में तब अम्मा आई
सीधी-साधी राह बताई
खर्च करो कम बच-बच जाए
खरच-खरच भी,
खुटी नहीं
मेरी अम्मा
[भोपाल : मातृदिवस 03।05.2007]
बापू
सूरज और चाँद देते हैं
खा-खा कसम गवाही
बापू कभी हार न माने।
कोर्ट कचेहरी खेत-हार में
सबका बस्ता बँध जाता
धरा गगन में सन्नाटे का
पक्का ठपपा लग जाता
समय बाँधकर पाँव बेड़ियाँ
गाने नीड़-गगन गाता
बापू बाँध कान पर पट्टी
नापे रस्ता मनमाने ...
भूख प्यास कपड़े लत्तों की चिंता
कभी नहीं पाली
सोने चाँदी के ढेर पड़े
बुरी निगाह नहीं डाली
श्रमसींकर के बलिदानों से
मुट्ठी रही नहीं खाली
नगर सेठ धन्ना सेठों के
जीवन भर सुने न ताने ...
कभी पराई बहू बेटियों
पर न बुरे डोरे डाले
नषा किया तो रहे होष में
तरस गए कीचड़ नाले
मन मंदिर के द्वार-द्वार पर
जड़े अलीगढ़िया ताले
छोटे बड़े, सभी रिस्तों को
बक्से थे षाल दुषाले
दानषीलता भोले पन थे
दूर-दराज न अनजाने
[भोपाल : 23.06.2007]
तुम मुस्कान बिखेरों ऐसी
मेरे गीत सजल हो जाएँ
योग-साधना संयम तप से
मैंने अब तक तो पाला है
भक्ति-उदधि में डुबा-डुबा
साँचे में इसको ढाला है
कभी-कभी संयम सीमा से
बाहर यह भी हो जाता है
और तुम्हारे गीतों के
चंदन वन में सो जाता है
तुम सुर तान भरो कुछ ऐसी
मेरे गीत सफल हो जाएँ
जब कलियाँ मुस्काकरके
यौवन पट उघार देती हैं
और मधुप को चुपके-चुपके
प्यार-प्यार कह देती हैं
तब पागल उन्मत्त जवानी
के बहाव में बह जाता
अरे, रवानी के बहाव में
बिरला ही संयम रख पाता।
तुम बाँधों गुंजन को ऐसा
गूँजे गीत गज़ल बन जाए
जब आया सैलाब उफनकर
मदमाती सरिता यौवन में
बाँध न पाये फिर तट-योगी
उसको निज भुजबंधन में
उनकी ऑंखों के सम्मुख ही
उनकी दुनिया उजरी-उजरी
तब बचपन की सभी साधना
लगती सचमुच गुजरी-गुजरी
बुनो प्राण में प्रीति इस तरह
अपनी प्रीति धवल हो जाएँ ।
[भोपाल : 20.11.2005]
नयन सजीले
यह मत पूछो मेरे साथी
आज उनींदे नयन भला क्यों ?
सारी रात सजाए सपने
सब अपने होकर भी विखरे
हार गया पर समझ न पाया
तुनुकमिजाजी उनके नखरे
अदल-बदल कर करवट मैंने
सारी काली रात बिताई
तारे गिनते-गिनते मैंने
जैसे-तैसे ऊषा पाई
अब भी क्या समझाऊॅं कैसे
आज थकीले नयन भला क्यों ?
मन दर्पण में चित्र तुम्हारा
सारी रात निहारा अपलक
प्रेम पत्र को पढ़ते-पढ़ते
मन गीत-ग़जल
केवल कोरे कागज रँगना
कविता कैसे हो सकती है ?
जहाँ-कहीं खूँख्वार अंधेरा
सूरज वहाँ उगाना है
कौर छिन रहा जिनके मुँह का
उनको कौर दिलाना है
षंखनाद को सुनसुनकरके
जनता कैसे सो सकती है ?
पल पल बदल रही दुनिया की
धड़कन सुनना बहुत जरूरी
उग्रवाद बाजारबाद की
चालें गुनना बहुत जरूरी
बम-बारूद बिछी घर-ऑंगन
सुविधा कैसे हो सकती है ?
कल-कल, कल-कल, गाते-गाते
पग-पग, पल-पल, आगे बढ़ना
दूर-दूर पुलिनों का रहकर
योग साधना में रत रहना
युग-युग ने सौंपी सौगातें
सरिता कैसे खो सकती है ?
छींज रहे षब्दों की वीणा
फटे बाँस की मुरली जैसी
जड़-जमीन से उखड़ी भाषा
पकी-अधपकी खिचड़ी जैसी
भानुमती का कुनबा हो तो
गीत-ग़जल क्यो हो सकती है ?
[भोपाल : 13.07.2007]
गीत की अमरता
मुझको मरना, तुमको मरना
मरेगा सब संसार
साँस-साँस के साथ गीत
अमरौती खाकर आया है
सूरज और चाँद तारों ने
जबसे पंख पसारे
जिजीविषा को मिले तभी से
सपने न्यारे-न्यारे
गीत सुनहरे सपनों का
पट्टा लिखवाकर लाया है
अंधे युग के घर-ऑंगन का
सारा विष पी डाला
और खोल दी सबसे पहिले
मंत्र-ऋचाओं की षाला
गीत ऋचाओं के घर जा
कुंडली मिलाकर आया है
षूल-फूल से हाथ मिलाए
पथ को झाड़ा-पोछा
भूलभूलैयों ने भरमाया
साहस हुआ न ओछा
छोटे-बड़े अखाड़ों में
परचम फहराकर आया है
[भोपाल : 13.07.2007]
गम पीता है
जब देखो तब, बीड़ी पी-पी
गम पीता है
रामभजन !
हुई सयानी बिटियां उनके
पीले हाथ उसे करने
माँ-बाप की षुध्द तेरहवीं
लील गई सारे गहनें
फटे पुराने कपड़े सीं-सीं
तन ढकता है
रामभजन !
कुछ बीघा टुकड़ों में पसरी
यहाँ-वहाँ उसकी खेती
उसमें भी ऊसर बंजर है
काँस दूब हँसती रेती
जुँआ धरे जब कंधा बीबी
जुत जाना है
रामभजन !
परवाह न साँसों की उसको
ललुआ भेज दिया पढ़ने
गिरवी रखकर टुकड़ा-टुकड़ा
सभी फर्ज पूरे करने
सबकी सब हसरतें अधूरी
चल बसता है
रामभजन !
[भोपाल : 28.05.2007]
मेरी पीड़ा
मेरी पीड़ा वो क्या समझें ?
जिनके पैर न फटी बिवाई
मिले बाप से महल अटारी
खाना-पीना घोड़ा-गाड़ी
कानी-कौड़ी नहीं कमाना
पानी जैसा सदा बहाना
क्या पीड़ा उस धन दौलत की
जे ना उनकी खरी कमाई
आसमान के नीचे सोना
सिकुड़-सिमट कर गठरी होना
'मुतिया' का सटकर सो जाना
गरम-नरम सपने वो जाना
वा क्या ठंड पूस की समझे
ओढ़ी कभी न फटी रजाई
बंजारे सा रहा भटकता
रूखा-सूखा रहा गटकता
सौंपे जिनको अपने सपने
दुर्दिन में वे हुए न अपने
क्यों उनके हित जीना-मरना
जिन्हें न मेरी पीर सुहाई
[भोपाल : 16.07.2007]
ऑंख मिचौली बादल की
अब ना फूटी ऑंखों भाती
ऑंख मिचौली बादल की
महल अटारी छप्पर छानी
दषों-दिषायें पानी-पानी
जमकर बाढ़ करे मनमानी
आई याद सभी को नानी
अखर रही सारी दुनिया को
अब मनमानी बादल की
बरसा थमी बाढ़ रोगों की
छीछालेदर है लाषों की
लूट-पाट दहषत चोरों की
जमीं जमात घूसखोरों की
हाथ रह गये उनके छूछे
जिन्हें जरूरत राहत की
जहाँ कहीं सूखा का खंजर
अटका गले पेट के अन्दर
जड़-चेतन की बदली हुलिया
अंजुरी पसरी बूंद-बूंद को
रास न आते झूठे वादे
आनाकानी बादल की।
[भोपाल : 20.07.2007]
ऐसा युग आया है भैया
ऐसा युग
आया है भैया
नाव
रेत पर ही चलती है !
कोर्ट कचैहरी न्याय न मिलता
कोई नहीं किसी की सुनता
अंग्रेजी में निर्णय मिलता
ईसा लिखता मूसा पढ़ता
जेब गरम होती है सबकी
रमुआ को मिलती है धमकी
चीर द्रोपदी कर्जा बनता
हार-जीत का छोर न मिलता
जगत-ढ़िढोरा
पिटता भैया
बिना तेल बाती जलती है !
पीपल बरगद आम खो गए
गाँव-खेत खलिहान सो गए
कुँआ-बाबड़ी रहा न पानी
नल करते अपनी मनमानी
बदल गई जिन्से खेंतों की
बदल गई किस्मत मेड़ों की
खाद-बीज सब मिलें विदेषी
घर-ऑंगन में सब परदेषी
जड़-जमीन
उखड़ी पुरवैय्या
पछवा हवा यहाँ बहती है !
जब विकास की ओर निहारो
चाहो उतने पाँव पसारो
जल-थल-नभ मुट्ठी में उनके
बटन दबाना बस में जिनके
थर-थर काँप रही मानवता
दर-दर घूम रही दानवता
रीति-नीतियाँ रखी ताक में
विष्वयुध्द रहता फिराक़ में
सोच-विचार
बुध्दि बेकाबू
बस, यों ही दुनिया चलती है
[भोपाल : 18.07.2007]
प्रीति धवल हो जाए
मेरा सचमुच में 'अकबक'
गूँज रहा कानों में अब तक
राम कसम जो किया था तुमने
तोड़ दिया वो वादा अपना
बार-बार दुहराया तुमने
पूँछ रहे सब संगी-साथी
आज लजीले नयन भला क्यों
तुमने जो संगीत सिखाया
अपने गीतों में ढ़ाला है
जीवन-दर्षन जो समझाया
वो सब गीतों की माला है
परामर्ष मेघों से माँगा
हवा लगी समझाने मुझको
सरिता कूलों ने समझाया
याद रखों गीतों में 'तुमको'
ना समझीं तो समझो प्रेयसि
आज सजीले नयन भला क्यों ?
[भोपाल : 09.03.1956]
मर-मर-कर भी,
मरी नहीं ।
घर-ऑंगन-चौपाल-खेत के
सारे फर्ज निभाए
देवरानी ननदों ने टोंका
ऑंधी तूफानों ने रोका
थक-थक कर भी, थकी नहीं
मेरी अम्मा
घर बाहर या आन गाँव का
द्वारे पथिक ठिठक जाए
बात-बात में अम्मा आए
आवभगत नयनों में छाए
खारा निर्झर झर-झर जाए,
झर-झर कर भी,
झरी नहीं
मेरी अम्मा
जब-जब खर्च खड़े मुँह बाए
खर्चा-पानी जुटा न पाए
यादों में तब अम्मा आई
सीधी-साधी राह बताई
खर्च करो कम बच-बच जाए
खरच-खरच भी,
खुटी नहीं
मेरी अम्मा
[भोपाल : मातृदिवस 03।05.2007]
बापू
सूरज और चाँद देते हैं
खा-खा कसम गवाही
बापू कभी हार न माने।
कोर्ट कचेहरी खेत-हार में
सबका बस्ता बँध जाता
धरा गगन में सन्नाटे का
पक्का ठपपा लग जाता
समय बाँधकर पाँव बेड़ियाँ
गाने नीड़-गगन गाता
बापू बाँध कान पर पट्टी
नापे रस्ता मनमाने ...
भूख प्यास कपड़े लत्तों की चिंता
कभी नहीं पाली
सोने चाँदी के ढेर पड़े
बुरी निगाह नहीं डाली
श्रमसींकर के बलिदानों से
मुट्ठी रही नहीं खाली
नगर सेठ धन्ना सेठों के
जीवन भर सुने न ताने ...
कभी पराई बहू बेटियों
पर न बुरे डोरे डाले
नषा किया तो रहे होष में
तरस गए कीचड़ नाले
मन मंदिर के द्वार-द्वार पर
जड़े अलीगढ़िया ताले
छोटे बड़े, सभी रिस्तों को
बक्से थे षाल दुषाले
दानषीलता भोले पन थे
दूर-दराज न अनजाने
[भोपाल : 23.06.2007]
तुम मुस्कान बिखेरों ऐसी
मेरे गीत सजल हो जाएँ
योग-साधना संयम तप से
मैंने अब तक तो पाला है
भक्ति-उदधि में डुबा-डुबा
साँचे में इसको ढाला है
कभी-कभी संयम सीमा से
बाहर यह भी हो जाता है
और तुम्हारे गीतों के
चंदन वन में सो जाता है
तुम सुर तान भरो कुछ ऐसी
मेरे गीत सफल हो जाएँ
जब कलियाँ मुस्काकरके
यौवन पट उघार देती हैं
और मधुप को चुपके-चुपके
प्यार-प्यार कह देती हैं
तब पागल उन्मत्त जवानी
के बहाव में बह जाता
अरे, रवानी के बहाव में
बिरला ही संयम रख पाता।
तुम बाँधों गुंजन को ऐसा
गूँजे गीत गज़ल बन जाए
जब आया सैलाब उफनकर
मदमाती सरिता यौवन में
बाँध न पाये फिर तट-योगी
उसको निज भुजबंधन में
उनकी ऑंखों के सम्मुख ही
उनकी दुनिया उजरी-उजरी
तब बचपन की सभी साधना
लगती सचमुच गुजरी-गुजरी
बुनो प्राण में प्रीति इस तरह
अपनी प्रीति धवल हो जाएँ ।
[भोपाल : 20.11.2005]
नयन सजीले
यह मत पूछो मेरे साथी
आज उनींदे नयन भला क्यों ?
सारी रात सजाए सपने
सब अपने होकर भी विखरे
हार गया पर समझ न पाया
तुनुकमिजाजी उनके नखरे
अदल-बदल कर करवट मैंने
सारी काली रात बिताई
तारे गिनते-गिनते मैंने
जैसे-तैसे ऊषा पाई
अब भी क्या समझाऊॅं कैसे
आज थकीले नयन भला क्यों ?
मन दर्पण में चित्र तुम्हारा
सारी रात निहारा अपलक
प्रेम पत्र को पढ़ते-पढ़ते
मन गीत-ग़जल
केवल कोरे कागज रँगना
कविता कैसे हो सकती है ?
जहाँ-कहीं खूँख्वार अंधेरा
सूरज वहाँ उगाना है
कौर छिन रहा जिनके मुँह का
उनको कौर दिलाना है
षंखनाद को सुनसुनकरके
जनता कैसे सो सकती है ?
पल पल बदल रही दुनिया की
धड़कन सुनना बहुत जरूरी
उग्रवाद बाजारबाद की
चालें गुनना बहुत जरूरी
बम-बारूद बिछी घर-ऑंगन
सुविधा कैसे हो सकती है ?
कल-कल, कल-कल, गाते-गाते
पग-पग, पल-पल, आगे बढ़ना
दूर-दूर पुलिनों का रहकर
योग साधना में रत रहना
युग-युग ने सौंपी सौगातें
सरिता कैसे खो सकती है ?
छींज रहे षब्दों की वीणा
फटे बाँस की मुरली जैसी
जड़-जमीन से उखड़ी भाषा
पकी-अधपकी खिचड़ी जैसी
भानुमती का कुनबा हो तो
गीत-ग़जल क्यो हो सकती है ?
[भोपाल : 13.07.2007]
गीत की अमरता
मुझको मरना, तुमको मरना
मरेगा सब संसार
साँस-साँस के साथ गीत
अमरौती खाकर आया है
सूरज और चाँद तारों ने
जबसे पंख पसारे
जिजीविषा को मिले तभी से
सपने न्यारे-न्यारे
गीत सुनहरे सपनों का
पट्टा लिखवाकर लाया है
अंधे युग के घर-ऑंगन का
सारा विष पी डाला
और खोल दी सबसे पहिले
मंत्र-ऋचाओं की षाला
गीत ऋचाओं के घर जा
कुंडली मिलाकर आया है
षूल-फूल से हाथ मिलाए
पथ को झाड़ा-पोछा
भूलभूलैयों ने भरमाया
साहस हुआ न ओछा
छोटे-बड़े अखाड़ों में
परचम फहराकर आया है
[भोपाल : 13.07.2007]
गम पीता है
जब देखो तब, बीड़ी पी-पी
गम पीता है
रामभजन !
हुई सयानी बिटियां उनके
पीले हाथ उसे करने
माँ-बाप की षुध्द तेरहवीं
लील गई सारे गहनें
फटे पुराने कपड़े सीं-सीं
तन ढकता है
रामभजन !
कुछ बीघा टुकड़ों में पसरी
यहाँ-वहाँ उसकी खेती
उसमें भी ऊसर बंजर है
काँस दूब हँसती रेती
जुँआ धरे जब कंधा बीबी
जुत जाना है
रामभजन !
परवाह न साँसों की उसको
ललुआ भेज दिया पढ़ने
गिरवी रखकर टुकड़ा-टुकड़ा
सभी फर्ज पूरे करने
सबकी सब हसरतें अधूरी
चल बसता है
रामभजन !
[भोपाल : 28.05.2007]
मेरी पीड़ा
मेरी पीड़ा वो क्या समझें ?
जिनके पैर न फटी बिवाई
मिले बाप से महल अटारी
खाना-पीना घोड़ा-गाड़ी
कानी-कौड़ी नहीं कमाना
पानी जैसा सदा बहाना
क्या पीड़ा उस धन दौलत की
जे ना उनकी खरी कमाई
आसमान के नीचे सोना
सिकुड़-सिमट कर गठरी होना
'मुतिया' का सटकर सो जाना
गरम-नरम सपने वो जाना
वा क्या ठंड पूस की समझे
ओढ़ी कभी न फटी रजाई
बंजारे सा रहा भटकता
रूखा-सूखा रहा गटकता
सौंपे जिनको अपने सपने
दुर्दिन में वे हुए न अपने
क्यों उनके हित जीना-मरना
जिन्हें न मेरी पीर सुहाई
[भोपाल : 16.07.2007]
ऑंख मिचौली बादल की
अब ना फूटी ऑंखों भाती
ऑंख मिचौली बादल की
महल अटारी छप्पर छानी
दषों-दिषायें पानी-पानी
जमकर बाढ़ करे मनमानी
आई याद सभी को नानी
अखर रही सारी दुनिया को
अब मनमानी बादल की
बरसा थमी बाढ़ रोगों की
छीछालेदर है लाषों की
लूट-पाट दहषत चोरों की
जमीं जमात घूसखोरों की
हाथ रह गये उनके छूछे
जिन्हें जरूरत राहत की
जहाँ कहीं सूखा का खंजर
अटका गले पेट के अन्दर
जड़-चेतन की बदली हुलिया
अंजुरी पसरी बूंद-बूंद को
रास न आते झूठे वादे
आनाकानी बादल की।
[भोपाल : 20.07.2007]
ऐसा युग आया है भैया
ऐसा युग
आया है भैया
नाव
रेत पर ही चलती है !
कोर्ट कचैहरी न्याय न मिलता
कोई नहीं किसी की सुनता
अंग्रेजी में निर्णय मिलता
ईसा लिखता मूसा पढ़ता
जेब गरम होती है सबकी
रमुआ को मिलती है धमकी
चीर द्रोपदी कर्जा बनता
हार-जीत का छोर न मिलता
जगत-ढ़िढोरा
पिटता भैया
बिना तेल बाती जलती है !
पीपल बरगद आम खो गए
गाँव-खेत खलिहान सो गए
कुँआ-बाबड़ी रहा न पानी
नल करते अपनी मनमानी
बदल गई जिन्से खेंतों की
बदल गई किस्मत मेड़ों की
खाद-बीज सब मिलें विदेषी
घर-ऑंगन में सब परदेषी
जड़-जमीन
उखड़ी पुरवैय्या
पछवा हवा यहाँ बहती है !
जब विकास की ओर निहारो
चाहो उतने पाँव पसारो
जल-थल-नभ मुट्ठी में उनके
बटन दबाना बस में जिनके
थर-थर काँप रही मानवता
दर-दर घूम रही दानवता
रीति-नीतियाँ रखी ताक में
विष्वयुध्द रहता फिराक़ में
सोच-विचार
बुध्दि बेकाबू
बस, यों ही दुनिया चलती है
[भोपाल : 18.07.2007]
प्रीति धवल हो जाए
मेरा सचमुच में 'अकबक'
गूँज रहा कानों में अब तक
राम कसम जो किया था तुमने
तोड़ दिया वो वादा अपना
बार-बार दुहराया तुमने
पूँछ रहे सब संगी-साथी
आज लजीले नयन भला क्यों
तुमने जो संगीत सिखाया
अपने गीतों में ढ़ाला है
जीवन-दर्षन जो समझाया
वो सब गीतों की माला है
परामर्ष मेघों से माँगा
हवा लगी समझाने मुझको
सरिता कूलों ने समझाया
याद रखों गीतों में 'तुमको'
ना समझीं तो समझो प्रेयसि
आज सजीले नयन भला क्यों ?
[भोपाल : 09.03.1956]
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