घर में गेहूं हों जहाँ ,मनता है त्यौहार
भूंजी भांग न हो जहां ,कैसे हो व्यवहार
कैसे हो व्यवहार ,नचे कैसे खुशहाली
जगर मगर हों दींप ,मने कैसे दीवाली
अधरों pr हो हास ,उमंगें हों तन मन में
समता का हो राज़ बटे धन बल घर घर में
दीवाली के दियोंका ,रूप रंग आकार
देख देख मन मगन हो ,ज्यों साकार
प्रेम एकता त्याग ,सबकी है धुंधली धूप
चालाकी षड्यंत्र ,करते है खूब जुगाली
जगर मगर बाज़ार ,मने उनकी दीवाली
तीज और त्यौहार की ,मूल भावना भंग
वैश्वीकरण बाज़ार की ,सबने पी ली भंग
सबने पी ली भंग ,किसी को हिश नहीं है
संस्कृति धर्म उदास ,अरे अफ़सोस नहीं है
पुरखे यदि आ जायं जब गाँव शहर गलियार
भौचक्के रह जाय ,लख तीज और त्यौहार
Wednesday, October 14, 2009
Subscribe to:
Comments (Atom)